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बाल साहित्य

विनती

अपर्णा शर्मा


हमें पढ़ाओ चाहे जितना,
पर ना हमको मारो जी।
हम बच्चे हैं छोटे-छोटे,
थोड़ा तो पुचकारो जी।

छोटे-छोटे हाथ हमारे,
लिखने से बेहाल हुए।
लिखते-लिखते हुए बावले,
तब भी नंबर गोल रहे।

हाय परीक्षा के दिन कितने,
लंबे होते जाते हैं।
चंद दिनों की मिली छुट्टियाँ,
उनमें भी गृहकार्य मिला।

कितनी योजनाएँ थी मन में,
खेल कूद और पिकनिक की।

पूरी कहाँ हैं वे हो पाती,
पंख लगा छुट्टियाँ उड़ जाती।
फिर बस्ते के साथ हमारा,
तनातनी का दौर शुरू।

जितना इसको पढ़ते हैं हम,
यह उतना मोटा होता।
ईश्वर कुछ तो दया करो,
हम बच्चों पर उपकार करो।

हाथ आपके बहुत बड़े हैं,
कोटि-कोटि हैं गिनती में।
थोड़ा बोझा आप उठा लो,
हम बच्चे पुकारें विनती में। 


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